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गुरु गोविंद सिंह को कैसे दोखे से मारा जानिए। guru govind singh ki mrityu kaise hui

गुरु गोविंद सिंह को कैसे दोखे से मारा जानिए। guru govind singh ki mrityu kaise hui

हमारे भारतीय इतिहास में हमें कई सारे ऐसे योद्धा और शासक हुए जिन्होंने अपने राज्य और भूमि की रक्षा के लिए अपने प्राणों को बलिदान देती है । आज हम ऐसे महान शासक और सिख धर्म के धरोहर दसवीं, गुरु गुरु गोविंद सिंह जी के बारे में बताएंगे । जिन्होंने सत्य के लिए संघर्ष किया और अपने जीवन को समर्पित किया । आज के इस लेख में सिख धर्म की दसवीं गुरु गोविंद सिंह जी guru govind singh ki mrityu kaise hui इसके बारे में जाने आगे पढ़े-

guru govind singh ki mrityu kaise hui

भारतीय इतिहास के गौरव गुरु गोविंद सिंह जी की औरंगजेब के मौत के बाद , गुरु गोविंद सिंह जी ने बहादुर शाह को बादशाह बनने में मदद की थी , बहादुर शाह और गुरु गोविंद सिंह जी के बीच बहुत अच्छे मधुर संबंध थे जिन्हें देखकर नवाब वजित खां घबरा गए और उन्होंने दो हत्यारे जमशेद खान और वसील बेग को भेजा गुरु के विश्राम स्थल नांदेड़ में जब सो रहे थे ताकि वह गुरु पर हमला कर सके ।

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दोनों पठानों ने मिलकर गुरु गोविंद सिंह नींद में थे तो उन्होंने पीछे से चाकू से हमला किया , लेकिन गुरु गोविंद जी ने हमलावर जमशेद को अपनी तलवार से मार गिराया और अन्य सिख लोगों ने वासिल बेग को भी मार डाला । इसके बाद गुरु गोविंद सिंह जी ने 7 अक्टूबर 1708 को एड नांदेड़ साहिब में पांच तत्वों विलीन हो गए इस दुनिया को अलविदा कह कर हमेशा के लिए चले गए ।

समय में गुरु गोविंद सिंह जी ने सिखों को गुरु ग्रंथ साहिब को अपना गुरु मानने का आदान-प्रदान शुरू किया और खुद ने भी माथा ठेका ।

गुरु गोविंद सिंह सिक्खों के दसवें गुरु बने

जब हमारे देश में कश्मीर पंडितों को जबरन धर्म परिवर्तन कराया जा रहा था । इसके खिलाफ सभी गुरु तेगबहादुर जी आए और अपनी फरियाद लेकर गुरु के सामने खड़े हुए । गुरु तेग बहादुर जी से कह रहे थे कि अगर कोई ऐसा महान बहादुर व्यक्ति है जो इस्लाम स्वीकार नहीं करना चाहता है सार्वजनिक रूप से अपने प्राणों को बलिदान देने के लिए तैयार है तो हम उसे क्यों नहीं मिलते ।

गुरु गोविंद सिंह उसे समय मात्र नव वर्ष के थे उन्होंने गुरु गोविंद जी ने अपने पिता की तेज बहादुर जी से कहा , महान व्यक्ति कौन है इस दुनिया में जो समाज में फैल रहे अत्याचार को रोक सके और समाज के भलाई के लिए अपना बलिदान दे सके ।

उसे समय कश्मीर पंडितों को जबरन धर्म परिवर्तन से बचने के लिए और समाज के भलाई के लिए गुरु तेग बहादुर जी ने इस्लाम धर्म नहीं कबूल करते हुए अपना बलिदान दे दिया । 11 नवंबर 1675 को औरंगजेब ने दिल्ली के चांदनी चौक में गुरु तेगबहादुर जी का सर कटवा दिया और उसके बाद 29 मार्च 1676 को बैसाखी के दिन गुरु गोविंद के दसवीं गुरु के रूप में घोषणा की । इस प्रकार सिख पंत के गुरु गोविंद सिंह जी को सिखों के दसवें गुरु बनाया गया ।

गुरु गोविन्द सिंह जी के बच्चो को किसने मारा

मुगलों ने गुरु गोविंद सिंह जी के बच्चों को जिंदा दीवार में चुनवा दिया गया , 27 दिसंबर सन 1704 को दोनों छोटे साहिबजादे और जोरावर सिंह और फतेह सिंह जी को दीवार में चुनवा दिया गया ।

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इतिहास कारों के अनुसार युद्ध में गुरु गोविंद सिंह जी के बड़े बेटे 17 वर्ष के अजीत सिंह मुगलों से लड़ते हुए शहीद हो गए , 14 वर्ष के पुत्र जुझार सिंह बड़े भाई की सहादत को देखते हुए अपने पिता से युद्ध के मैदान में जाने की अनुमति मांगी । एक पिता ने अपने हाथों से पुत्र को सजाकर युद्ध की मैदान में भेजा ।

बाबा जुझार सिंह मुगलों युद्ध के मैदान में ओके छक्के छुड़ा दिए और लड़ते – लड़ते  वीरगति हुए को प्राप्त हुए । दूसरे और गुरु के दोनों छोटे बेटे जोरावर सिंह 5 वर्ष और फतेह सिंह 7 वर्ष अपने दादी ,माता गुजरी के साथ युद्ध के दौरान पिता से बिछड़ गए ।

सेवक गंगू ने सभी को मुगलों की जुल्मी से बचने के लिए अपने घर ले गया था और उन्होंने सरहिंद नवाज वजीर खान को को इस बारे में बताया । वजीर खान ने माता गुजरी , बाबा जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह को ठंडा बुर्ज में कैद कर लिया । खान ने साहिबजादों को अपनी कचहरी में बुलाया और इस्लाम को काबुलने के लिए धमकी दी । छोटे साहिबजादों ने बोलो सो निहाल , सत श्री अकाल ‘ के जयकारे लगाए और धर्म परिवर्तन करने से इनकार कर दिया । वजीर खान ने उन्हें जिंदा दीवार में व चुनवा देने का आदेश दिया यहाँ सुनकर माता गुजरी ने प्राणों को त्याग दिया ।

नवाब वजीर खान ने इस्लाम न काबुल करने पर 27 दिसंबर को दोनों को दीवार में चुनवा दिया गया था ।

गुरु गोबिंद सिंह जी के मृत्यु के बाद क्या हुआ ?

श्री गुरु गोविंद सिंह की मृत्यु के बाद सिखों ने बंदा बहादुर के नेतृत्व में मुगलों के खिलाफ विद्रोह किया  । गुरु गोविंद सिंह की मृत्यु के बाद गुरुपद की परंपरा समाप्त हो गए और सिखों का नेतृत्व उनके भरोसेमंद शिष्य बंदा सिंह बहादुर के पास चला गया ।

बंदा सिंह बहादुर सिख  योद्धा और खालसा सेवा के सेनापति थे । पंजाब में अपना खालसा सेवा स्थापित करने के बाद से बंदा सिंह बहादुर ने जमींदारी के प्रथा को समाप्त कर दिया और भूमि जोतने वाले को संपत्ति के अधिकार दे दिए थे ।

बंदा सिंह बहादुर ने दिल्ली से लाहौर तक पंजाब की निचली जाती और किसानों के साथ मिलकर संगठन बनाया था और लगभग 8 वर्षों तक मुगलों की सेना के खिलाफ जोरदार संघर्ष किया था । हालांकि वर्ष 1715 उन्हें पकड़ लिया गया था और उन्हें मौत के घाट उतार दिया गया था ।

इसकी असफलता की कई कारण है । एक मुगल सेना बहुत मजबूत थी , और दूसरा पंजाब की ऊंची जातियों और वर्गों ने ग्रामीण गरीबों और निचली जातियों के लिए उनके अभियान के कारण बंदा सिंह बहादुर के खिलाफ मुगल सेना का साथ दिया था । इस कारण से टूटते चले गए  ।

गुरु गोविंद सिंह जी की मृत्यु के बाद , सिख समुदाय में कमी सा गया क्योंकि उनके पक्षी में सिर्फ दिल्ली में अपने निजी उद्योग उद्यानों में अपने साथी से के साथ रह गए थे और इसे बैसाखी की बैसाखी आ जाता है ।

गुरु गोविंद सिंह जी की मृत्यु के बाद , गुरु ग्रंथ साहिब (सिखों के प्रमुख धार्मिक ग्रंथ) को गुरु माने जाने का ऐलान किया गया था । इससे सिख धर्म में गुरु गोविंद सिंह जी के बाद के समय में गुरु और परंपरा समाप्त हो गई और गुरु ग्रंथ साहिब को सिखों का आध्यात्मिक मार्गदर्शन माना गया है ।

सिख समुदाय ने अपने नेता की कमी को महसूस किया , लेकिन उन्होंने अपनी उपदेश भूमि का यथा संभव निर्वाह किया और गुरु ग्रंथ साहिब की ओर ध्यान दिया । उनके शिष्य बाबा बख्तियार सिंह ने भी सिख समुदाय को संगठित एवं एकत्रित रखने का कार्य किया और उनके उपदेश संदेश को आगे बढ़ाया ।

गुरु गोविंद सिंह जी के जयंती क्यों मनाई जाती है ?

गुरु गोविंद सिंह जी की जयंती को प्रकाश पर्व भी कहा जाता है और यहां से समुदाय में एक महत्वपूर्ण और आध्यात्मिक त्यौहार है । इस सालाना 25 दिसंबर को मनाया जाता है। इस दिन शेख समुदाय गुरु गोविंद सिंह जी के जन्मदिन को याद करता है और उनके जीवन और उपदेशों के महत्वपूर्ण घटनाओं को स्मरण करता है ।

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गुरु गोविंद सिंह जी ने सिख समुदायों को साहस , बलिदान, और आत्मनिर्भरता के माध्यम से जीने का प्रेरणा दिया । उन्होंने खालसा बंद की स्थापना की और सिखों को एक समृद्धि , साहस , और न्याय की भावना से युक्त बनाया । गुरु गोविंद सिंह जी का जीवन एक महान आत्मा और धार्मिक नेता के रूप में समर्पित रहा है ।

गुरु गोविंद सिंह जी की जयंती के दिन , सिख समुदाय में धार्मिक सभा में आयोजित की जाती है , गुरुद्वारे में अखंड पाठ (आंचल सुरक्षा वाले श्री गुरु ग्रंथ साहिब का अध्ययन) किया जाता है, कीर्तन किया जाता है और सिक्कों को उपदेशों का सुनने का अवसर मिलता है । यहां एक महत्वपूर्ण अवसर होता है सिख समुदाय के लोगों के लिए आध्यात्मिक और सामाजिक संबंधों को मजबूत करने का ।

गुरु गोविंद सिंह जी FAQ

1. गुरु गोविंद सिंह जी के जीवन संक्षेप

  • गुरु गोविंद सिंह जी का जन्म 22 दिसंबर 1666 को हुआ था ।
  • उनके पिता का नाम गुरु तेग बहादुर था जो 9 से गुरु थे ।
  • उन्होंने दसवीं सिख गुरु बनने के बाद, खालसा पान की स्थापना की और विशाल सेवा की तरह रचना की ।
  • गुरु गोविंद सिंह जी ने चार साहिबजादे को बलिदान करते हुए सिखों को सिखों को साहस और न्याय की शिक्षा दी ।

2. गुरु गोविंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना कैसे की ।

  • गुरु गोविंद सिंह जी ने 1699 में बैसाखी दिवस को ही खालसा पंथ की स्थापना की ।
  • उन्होंने पंज प्यारे (पाँच सिख सदस्य) को खालसा बनाने के लिए अपना अमित प्रदान किया और सिखों को एक समृद्ध , साहसी, और न्यायप्रिय समुदाय बनाने का आदान-प्रदान किया ।

3. गुरु गोविंद सिंह जी की शिक्षाएं ?

  • उन्होंने सिखों को साहस बलिदान और आत्मनिर्भरता के माध्यम से जीने का प्रेरणा दिया ।
  • उन्होंने धार्मिक और सामाजिक न्याय को बढ़ा देने का कार्य किया ।

4. गुरु गोविंद सिंह जी के बाद का समय ?

  • उनकी मृत्यु के बाद , सिख समुदाय ने गुरु ग्रंथ साहिब को अपना गुरु माना और गुरु परंपरा समाप्त हो गई ।
  • सिख समुदाय ने गुरु ग्रंथ साहिब को आध्यात्मिक मार्गदर्शन के रूप में स्वीकार किया ।

5. गुरु गोविंद सिंह जी की जयंती कैसे बनाई जाती है ?

  • गुरु गोविंद सिंह जी की जयंती को ”प्रकाश पर्व” कहा जाता है ।
  • इस दिन सिख समुदाय में धार्मिक सभाएं अखंड पाठ , भजन कीर्तन , और सिखों के उपदेशों का पाठ किया जाता है ।
  • समुदाय के लोग इस दिन को एक आध्यात्मिक और सामाजिक उत्सव के रूप है मानते हैं ।

श्रीमद् भागवत गीता जयंतीΙΙΙΙ

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